हम सब हर साल की तरह आज भी रावन के पुतले को जला कर खुश होगे कि बुराई पर अच्छाई की जीत हुई । क्या सच मे एेसा है? रावन के पुतले को जला देने से सब हो जाता है?
रावन, जिस के 10 सर थे, 20 आँखे थी, पर उसकी गलती थी, उसकी नजर सीता माता पर थी, पर आज कल क्या है? 1 सर है 2 आँखे, पर नज़र हर लड़की पर होती है ।
क्या सच में रावण के पुतले को जला देने से सब हो जाता है?
क्या हमको अपने अन्दर की बुराई को नहीं जलाना चाहिए? क्या हम अपने समाज की बुराई को नहीं जला सकते?
आज के समय में राम बनना तो बहुत दूर की बात है । आज कल तो रावण भी कोई नहीं बन पता, माफ़ करे पर सच में थोड़ा सोच के देखे ।रावण की गलती थी वो माता सीता को उठा के ले गया था, पर उसने अपनी मर्यादा पर नहीं की । फिर भी हम रावण को हर साल जलाते है ।
पर जो समाज में रोज कितने बलात्कार करते है हम उनको क्यों सजा नहीं दिला पाते?
आज कल बलात्कार, बच्चों के साथ शोषण, दहेज़ की आग को आम बात हो गए है । सिर्फ रावण के पुतले को जला कर खुश न होए, अपने अन्दर की और अपने समाज की बुरायो को मिटाए । दशहरा मनाने का सही मतलब को समझे, मतलब अपने अंदर के सारे बुरी आदतों पर अपनी अच्छे आदतों की जीत। हमारे समझ में बलात्कार, बच्चों के साथ शोषण, दहेज़ की आग, नशे की लत जैसी गंभीर बुरायो को मिटाने की कोशिश करे । दुसरो पर होते अत्याचार को रोकने की कोशिश करे सिर्फ देखते न रहे, अपनी आवाज उठए । खुद को और समझ को सही दिशा में ले कर जाये ।
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