विचार व्यक्त करना मुश्किल काम नहीं हैं , अगर मुश्किल काम हैं तो विचारों को सही भाव के साथ व्यक्त करना | मुझे कभी भी कुछ बोलने या लिखने में कठिनाई नहीं हुए ,क्योकि मेरा मानना हैं की इंसान की कलम भले ही कोई भी भाषा लिखे लेकिन उसका दिल और दिमाग हमेशा उसकी मातृभाषा में ही सोचता है|
और यकीन मानिये अगर आपके सोचने और व्यक्त करने की भाषा अलग हैं तो कहीं ना कहीं आपके विचारों के मायने खो जाते हैं |
इन सब के बावजूद भी हमे आजकल बड़ा सुन ने को मिलता हैं |
“हिंदी में नहीं अंग्रेजी में बोलो “
आजकल लगभग हर बच्चे को अपने माँ -बाप से यही सुनने को मिलता है |और पैरेंट्स को गर्व होता है ये बोल कर कि
“अरे , हमारे बच्चे की हिंदी बहुत कमज़ोर है , इंग्लिश बड़ी सही बोलता है |”
“हिंदी में कोई रूचि नहीं है इसकी |”
जब इंग्लिश में बच्चा कमज़ोर होता है ,तो क्यों हर किसी के माथे पर बल पड़ जातें हैं ?
क्यों हिंदी में 2 नंबर आने से आप गर्व से कहते हैं की हिंदी कमज़ोर हैं और इंग्लिश में 2 नंबर कम आने से सीधा टूयशन वालों के दरवाज़े पर पहुंच जाते हैं ?
वक़्त की मांग हैं जानती हूँ , न ही मैं अंग्रेजी विरोधी हूँ | पर क्या सच में हिंदी इतना महत्व खो चुकी है?हिंदी जानना शर्म की बात हो गयी है|मैंने अपना ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन इंजीनियरिंग माध्यम से करने के बाद जब सोशियोलॉजी MA हिंदी माध्यम से करने का निर्णय लिया था , यकीन मानिये लोग आश्चर्य कर रहे थे , मजाक उड़ा रहे थे |
स्तब्ध हूँ मैं, कब और कैसे विदेशी भाषा अपने ही घर में घूस कर अपनी मातृ भाषा को बाहर कर गयी ?
स्तब्ध हूँ मैं ,कब और कैसे ,जर्मन ,फ्रेंच भाषा में हिंदी से ज्यादा पकड़ मजबूत होना हमारे गौरव का मापन बन गया ?
स्तब्ध हूँ मैं , कब इंग्लिश बोलना ,पढ़े लिखे होने की निशानी बन गया और हिंदी बोलना गवार होने का संकेत?
स्तब्ध हूँ मैं, की अपनी की मातृभाषा को जगह दिलाने के लिए मुट्ठी भर लोग जूझ रहे हैं|
हर साल ,”हिंदी दिवस ” पर 2 -4 लेख लिख कर ,कुछ डिबेट करके ,कुछ कविता ,गोष्टी आदि का आयोजन करने मात्र से ये अभियान सफल होता मुझे तो नहीं दिख रहा |
जब तक आने वाली पीढ़ी को हम हिंदी का औचित्य समझाने में सफल नहीं होंगे तब तक नहीं होगा कुछ | हिंदी की बिंदी इस राष्ट्र के माथे पर बरक़रार रखने के लिए बहुत मेहनत की जरुरत हैं | हिंदी केवल हिंदुस्तान के नाम में ही रह जाएगी |
-स्वप्ना कादियान
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